कभी सोचा है
की किसी से झगड़ने के बाद हम उदास क्यों हो जाते हैं यहाँ तक की हम सही हों , तब भी
और किसी की निस्वार्थ सेवा कर के हम खुस क्यों हो जाते हैं जबकि हमने खुद को थकाया है बिना किसी उद्देश्य के तब भी
चलिए इसे साइकोलॉजी और साइंस की मदद से समझते हैं.
इंसान के फोरब्रेन में एक पार्ट होता है लिम्बिक सिस्टम इसे चीजों के होने का पता होता है पर न तो इसे समय का पता होता है न ये कि ये कौन कर रहा है यानि हम खुद कर रहे हैं या कोई और
अपनी बुक ‘ दी मोसेस कोड ‘ में james twyman ( जेम्स ट्वाई मैन ), psychologist harville hendrix (हारविल हेंड्रिक्स की मदद से बताते हैं
ये लिम्बिक सिस्टम टाइम ओरिएंटेड और ऑब्जेक्ट ओरिएंटेड नहीं होता इसे तो बस चीजों के होने का पता होता है
शायद यही वजह है कि अगर हम किसी को डांटते हैं उसे समझने के लिए या ठीक करने के लिए तो इसे बस ये पता होता है कि डांट पड़ रही है और ये रिस्पांस देता है जो निश्चित रूप से उदासी का होगा
हमारी तार्किक शक्ति बेशक ये साबित करे कि हमने सही किया है और अच्छा महसूस करने की कोशिश करे पर मस्तिष्क का यह पार्ट उदासी का एहसास ही व्यक्त करेगा
ज्यादातर लड़ाई झगड़ो के बाद हम इसीलिए तकलीफ में होते हैं इसके बावजूद कि हमने उनमे विजय पायी हो
ऐसे अगर हम किसी को उपहार देते हैं तो इसे पता होता है कि उपहार दिया गया है ये यह नहीं समझ पाता कि किसने किसे उपहार दिया और निश्चित रूप से उत्पन्न भाव ख़ुशी का होता है
बेशक हमारी तार्किक शक्ति हमे समझाए कि हमने खर्च किया है और ये एक तरह का नुक्सान है पर ब्रेन का यह पार्ट जो डोपामाइन हार्मोन भी जेनेरेट करता है जो एक ख़ुशी पैदा करने वाला हार्मोन है हमे उपहार देने पर खुसी का एहसास करता है
वास्तव में जहाँ कोई चीज बनती है वो उस बनने की जगह को ही सबसे ज्यादा फायदा या नुक्सान पहुँचती है
फूल का व्यापार करने वालों के हाथ सुगन्धित होते हैं और ग्रहणीआ जो खाना बनती हैं उस से उनका मन पहले ही जाता है
इससे पहले की हम किसी को कोई चीज दें वो हमारे पास आती है सच कहते हैं
एक प्रकार से देना भी पाना है
जो कुछ भी हम देते है प्यार ख़ुशी गुस्सा नाराजगी
पहले हमारा शरीर खुद उसे प्राप्त करता है फिर ये किसी और के पास जाता है
इसलिए जरा सम्हल कर और समझदारी से व्यहवार करियेगा